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"साकेत" राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त की सर्वोत्तम काव्य-रचनाओं में से एक है। यह महान ग्रंथ रामकथा पर आधारित होते हुए भी पारंपरिक कथानक से भिन्न, उर्मिला के दृष्टिकोण से रामायण के प्रसंगों को प्रस्तुत करता है। उपाख्यान में उर्मिला का त्याग, प्रेम, भैर्य और एकांत-पीड़ा अत्यंत मार्मिक और हृदयस्पर्शी रूप में उभरते हैं। जहाँ लक्ष्मण स्वधर्म-पालन में वनगमन करते हैं, वहीं उर्मिला आत्मबलिदान और निष्ठा की प्रतिमा बनकर गृहस्थ जीवन में रहीं-गुप्तजी ने उनके मौन-संघर्ष को वाणी देकर स्त्री-चरित्र के गौरव को नई ऊँचाई प्रदान की। काव्य में मधुरता, गंभीरता, भाव-प्रवाह और भाषा की सहज-सरल संस्कृतनिष्ठ गरिमा का अद्भुत संयोजन है। "साकेत" नारी की गरिमा, भारतीय संस्कृति और आदर्श जीवन-मूल्यों का कालजयी महाकाव्य है, जो पातकों को करुणा, कर्तव्य, प्रेम और धैर्य का अमर संदेश देता है।

मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964) हिन्दी के महल कवि और राष्ट्रीय काव्यधारा के प्रमुख स्तम्भ थे। सरल, संस्कृतनिष्ठ भाषा, उन्नत आदर्शवाद तथा देश-भक्ति  से ओतप्रोत उनके काव्य ने हिन्दी साहित्य को नई दिशा प्रदान की।

मुख्य कृतियाँ- साकेत, भारत-भारती, पंचवटी, यशोदा, जयद्रथ-वध

उनको रचनाएँ- राष्ट्र‌भावना, नैतिकता, कर्तव्यपरायणता और मानवीय संवेदना से परिपूर्ण हैं।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के युग में उनके साहित्य ने जनमानस में उत्साह और आत्मगौरव जगाय। उन्हें सम्मानतः "राष्ट्रकवि" कहा गया। सरलता में गहनता तथा उदात्त रूचों की विराट अभिव्यक्ति उन्हें हिन्दी काव्य जगत में अमर बनाती है

साकेत

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