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गुदड़ी में लाल तथा अन्य कहानियाँ  छायावाद युग के महान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित विशिष्ट कहानी संग्रह है। इस संग्रह की कहानियाँ मानवीय संवेदनाओं, अंतरिक संघर्ष, नैतिक मूल्यों और सामाजिक यथार्थ की गहरी अनुभूति कराती हैं। शीर्षक कथा "गुदडी में लाल" साधारण परिस्थितियों में छिपी असाधारण प्रतिष्य और मानवीय गरिमा का अत्यंत हृदयस्पर्शी चित्रण है। प्रसाद ने अपनी विशिष्ट काव्यात्मक शैली में उन पात्रों को जीवन दिया है जो विपरीत परिस्थितियें में भी चरित्र, आत्मसम्मान और मानवता के पथ पर दृढ़ रहते हैं। संग्रह की कहानियों में भाव-सौन्दर्य, मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता, और सामाजिक संवेदनशीलता का अद्भुत संगम है। प्रसाद की लेखनी पाठक को केवल कथा ही नहीं, बल्कि मानवीय जीवन के गहन सत्य का अनुभव कराती है। यह कृत्ति साहित्य-प्रेमियों, विद्यार्थियों और जीवन-दर्शन के खोजकर्ताओं के लिए समान रूप से मूल्यवान है।

जयशंकर प्रसाद (1889-1937) हिन्दी साहित्य के छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे। वे कवि, नाटककार, उपन्यासकार और कहानीकार व चारों विधाओं में अद्वितीय रूप से सिद्धहस्त थे।

उनकी प्रमुख रचनाएँ-

काव्य : कामायनी, झरना, 

नाटक : ध्रुवस्वामिनी, चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त

कहानी-संग्रह: इंद्रजाल, चाया सहित अनेक उपन्यास : कंकाल

प्रसाद की भाषा गंभीर, भावसमृद्ध और काव्यमय है, जिसमें भारतीय संस्कृति, दर्शन और मानवीय चिंतन की गहरी रूप मिलती है। उन्होंने साहित्य में न्मेष अध्यात्मिकता और मानवीय संवेदना का अद्‌भुत संगम प्रस्तुत किया। उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों में अत्मिक ऊँचाई, सौंदर्यबोध और मानवीय मूल्यों की प्रेरणा जगाती हैं, और उन्हें हिन्दी साहित्य के कालजयी रचनाकारों की श्रेणी में स्थापित करती हैं। 

गुदड़ी में लाल तथा अन्य कहानियाँ

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