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"चरित्रहीन" शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का एक अत्यंत प्रभावशाली सामाजिक मनोवैज्ञानिक उपन्यास है, जो समाज द्वारा स्त्री-पुरुष संबंधों पर लगाए जाने वाले कठोर नैतिक मानदंडों और नैतिकता के दोहरे मापदंडों को उजागर करता है। उपन्यास के केंद्र में किरणमयी, सुरेश, सती, सवित्री जैसे पात्र हैं जिनके जीवन संघर्ष, प्रेम, त्याग, भ्रम और आत्मसम्मान सामाजिक रुड़ियों के बीच गहराई से उभरते हैं। "चरित्रहीन" केवल प्रेम-कथा नहीं, बल्कि समाज के कठोर निर्णयों और मानवीय संवेदनाओं का मार्मिक चित्रण है। यह उपन्यास बताता है कि सच्चा चरित्र बाहरी व्यवहार से नहीं, बल्कि मन को पवित्रता और भावनात्मक सत्य से पहचाना जाता है। शरतचंद्र की भावपूर्ण शैली, संवादों की सादगी और मानवीय मन की सूक्ष्म समझ इस उपन्यास की हिन्दी-बंगाली साहित्य में शाश्वत क्लासिक बनाती है।

 

           शरतचंद्र चट्टोपाध्याय (1876-1938) बंगाल के अप्रतिम कथाकार और भारतीय उपन्यास-साहित्य के अतुल्य शिल्पी थे। उनकी रचनाएँ मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक यथार्थ, स्त्री-मन, प्रेम, करुणा और संघर्ष के सजीव चित्रण के लिए विख्यात हैं।

       उनकी प्रमुख कृतियाँ-

देवदास

परिणीता

श्रीकांत

बड़ी दीदी

चरित्रहीन

 

शरतचंद्र की भाषा सरल, स्वाभाविक और हृदयस्पर्शी है। उन्होंने समाज की रूड़ियों, पाखंड और स्त्री-वंथना को साहस और करुणा के साथ उभारा। उनकी कृतियाँ अनेक भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई और फिल्मों का आधार बनीं। भारतीय साहित्य में मानवीय करुणा और मनोवैज्ञानिक गहराई के जिस शिखर को उन्होंने हुआ, यह उन्हें कालजयी साहित्यकारों की श्रेणी में स्थापित करता है।

चरित्रहीन

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