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जयशंकर प्रसाद (1889-1937) हिन्दी साहित्य के छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे। वे कवि, नाटककार, उपन्यासकार और कहानीकार एवं चारों विधाओं में अद्वितीय रूप से सिद्धहस्त थे।

उनकी प्रमुख रचनाएँ-

काव्य : कामायनी, झरना, आँसू

नाटक : ध्रुवस्वामिनी, चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त

कहानी-संग्रह: इंद्रजाल, छाया सहित अनेक

उपन्यास : कंकाल

प्रसाद की भाषा गंभीर, भावसमृद्ध और काव्यमय है, जिसमें भारतीय संस्कृति, दर्शन और मानवीय चिंतन की गहरी छाप मिलती है। उन्होंने साहित्य में नवोन्मेष, आध्यात्मिकता और मानवीय संवेदना का अ‌द्भुत संगम प्रस्तुत किया। उनकी रचएँ आज भी पाठकों में आत्मिक ऊँचाई, सौंदर्यबोध और मानवीय मूल्यों की प्रेरणा जगाती है, और उन्हें हिन्दी साहित्य के कालजयी रचनाकारों की श्रेणी में स्थापित करती हैं।

झरना तथा अन्य कहानियाँ

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