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"निर्दोष अस्तित्व" केवल शब्दों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह मेरे जीवन के अनुभवों, आत्मिक खोज और मानवीय संबंधों के उतार-चढ़ाव से निकला हुआ एक सजीव प्रवाह है।एक आध्यात्मिक कोच और हीलर के रूप में, मैंने अनगिनत आत्माओं से मुलाकात की है कुछ टूटे हुए थे, कुछ खोए हुए, और कुछ अपने भीतर छिपे प्रकाश को पहचानने की यात्रा पर थे।हर व्यक्ति ने मुझे यह सिखाया कि हमारे भीतर एक कोमल, पवित्र और निर्दोष केंद्र है, जो चाहे कितनी भी आँधियाँ क्यों न आएँ, कभी मैला नहीं होता।इस पुस्तक को लिखते समय मैंने यह समझा कि आज की भागदौड़ भरी दुनिया में "निर्दोष अस्तित्व" केवल एक दार्शनिक विचार नहीं, बल्कि एक जरूरी अभ्यास है। तनाव और प्रतिस्पर्धा ने हमें भीतर से कठोर बना दिया है। इस पुस्तक के अध्याय पाठक को सिखाएँगे कि किस तरह वह अपने मूल मासूमपन और संतुलन को वापस पा सकता है। संबंधों में गलतफहमियाँ और दूरीयहाँ आप सीखेंगे कि कैसे अपने भीतर की शुद्धता और सहानुभूति से रिश्तों को ठीक किया जा सकता है। स्वयं के प्रति करुणाहम अक्सर दूसरों के प्रति दयालु होते हैं लेकिन अपने प्रति कठोर; यह पुस्तक पाठक को यह याद दिलाएगी कि आत्म-स्वीकृति ही सच्ची आध्यात्मिक शुरुआत है।प्राची सिंह

निर्दोष अस्तित्व

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