top of page

"कपालकुण्डला" बंकिमचंद्र चटर्जी का एक कालजयी उपन्यास है, जिसमें प्रेम. करुणा, धर्म-संस्कृति और मानव-मन की जटिलताओं का अद्भुत चित्रण मिलता है। उपन्यास की नायिका कपालकुण्डला एक वन-कन्या है- स्वाभिमानी, निर्भीक, निर्मल और भावनाओं से परिपूर्ण। उसके सरल, निष्कपट हृदय में उदात्त प्रेम और त्याग की भावना विद्यमान है। कहानी में जब कपालकुण्डला सभ्य समाज में प्रवेश करती है. तो उसके स्वाभाविक प्रेम, स्वतंत्र स्वभाव और पवित्र भावनाओं का टकराव सामाजिक नियमों और परंपराओं से होता है प्रेम, कर्तव्य, संस्कार और स्वतंत्रता के बीच के द्वद्ध को बंकिमचंद्र ने अत्यंत भावपूर्ण और मनोवैज्ञानिक गहराई के साथ प्रस्तुत किया है। इस उपन्यास में काव्यात्मक भाषा, रोमांटिक भावों की मधुरता, और चरित्रों की गहन संवेदनशीलता पाठक को भाव-विभोर कर देती है। "कपालकुण्डला" भारतीय प्रेम-उपन्यास परंपरा की आधारशिला मानी जाती है, जो आज भी पाठकों के हृदय में अमिट स्थान बनाए हुए है।

बंकिमचंद्र चटर्जी (1838-1894) आधुनिक भारतीय उपन्यास साहित्य के प्रवर्तक और भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूतों में गिने जाते हैं। वे साहित्यकार, राष्ट्रचेतक और चिंतक तीनों भूमिकाओं में अद्वितीय प्रतिभा के धनी थे।

उनकी प्रमुख रचनाएँ- आनन्दमठ, कपालकुण्डला, देवी चौधुराणी, दुर्गेशनंदिनी।

"वन्दे मातरम्" उनके उपन्यास "आनन्दमठ से लिया गया राष्ट्रगीत है, जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई चेतना प्रदान की। बंकिमचंद्र की भाषा सरल, भावपूर्ण, संस्कारयुक्त और ओजस्वी है। उन्होंने साहित्य को राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक आत्मगौरव की दिशा दी। भारतीय साहित्य में कथाशिल्प, चरित्र निर्माण और भाव गहनता के लिए बंकिमबंद्र का योगदान अमूल्य है, और उनकी रचनाएँ आज भी समान रूप से प्रेरक, रसपूर्ण और जीवंत हैं ।

कपालकुण्डला

SKU: 9788199148017
₹450.00 Regular Price
₹405.00Sale Price
Quantity
  • 120

Related Products

bottom of page