'हिंद स्वराज' पुस्तक में गाँधीजी ने अपने स्वराज, सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को व्यक्त किया है। उन्होंने ब्रिटिश शासन की कठोर आलोचना की और भारतीय समाज की विभिन्न समस्याओं पर विचार प्रस्तुत किए। गाँधीजी ने पश्चिमी सभ्यता की आलोचना करते हुए भारतीय सभ्यता के गुणों का गुणगान किया। उनके अनुसार, पश्चिमी सभ्यता भौतिकवादी और नैतिक पतन की ओर ले जाने वाली है, जबकि भारतीय सभ्यता आत्म शुद्धि और नैतिक उत्थान की ओर ले जाती है। गाँधीजी ने स्वदेशी आंदोलन का जोरदार समर्थन किया और विदेशी वस्त्रों और उत्पादों का बहिष्कार करने की अपील की। उन्होंने यह भी बताया कि सच्ची स्वतंत्रता केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि आत्मनिर्भरता और आत्म-नियंत्रण के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। 'हिंद स्वराज' पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनमानस के लिए प्रेरणास्रोत बनी और आज भी सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा में महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इस पुस्तक ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी और जनता को आत्मनिर्भरता, सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। गाँधीजी के ये विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमें नैतिक और आत्मनिर्भर जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
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