जैविक फसल प्रबंधन के अंतर्गत, जैविक कृषि के आवश्यक सिद्धांतों को अपनाकर, मृदा निर्माण, संरक्षण, कीट प्रबंधन, फसलों, फलों, सब्जियों और फूलों को उगाने की विधियों को समाहित किया गया है। इस पुस्तक में दलहनी फसलों में जैविक खेती, पौधों की बीमारियों के प्रबंधन में जैविक प्रभावकारिता, जैविक पोषक तत्व प्रबंधन, संरक्षण प्रथाओं को अपनाने के सामाजिक- आर्थिक आयामों, गैर-रासायनिक खरपतवार नियंत्रण, फाइटोस्टिम्यूलेशन के लिए जीवाणुओं को बढ़ावा देने वाले पौधों की वृद्धि, नैनो-तकनीकी दृष्टिकोण, और अंत में कृमि खाद में भी विस्तृत अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। प्रस्तुत पुस्तक मुख्य रूप से दलहनी फसलों में रोगों एवं कीटों के लक्षण, पहचान अवं उनके विभिन्न जैविक सोपानों द्वारा प्रबंधन विषयों पर अनुसन्धान अवं विकास का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में कुल १६ अध्याय हैं जो की जैविक दलहन उत्पादन एवं प्रबंधन संबंधित आयामों पर व्यापक जानकारी भी प्रदान करते हैं।
जैविक आयामों द्वारा दलहनी फसलों में रोग एवं कीट प्रबंधन
डॉ. आर. के. मिश्रा वर्तमान में भा.कु. अनु.प. भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आई.आई.पी. आर) कानपुर में प्रधान वैज्ञानिक (पावपं रोग विज्ञान) के रूप में कार्यरत हैं और गालों पर अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों से जुड़े हैं। डॉ. मिश्रय दलहनी फसलों में लगने वाले विभिन्न प्रकार के बीमारियों, उनके लक्षण, वर्णन एंव उनके प्रबंधन विषयों पर शोष आधारित हैं। इनके शोधों के द्वारा अरहर में महत्वपूर्ण मुद्दा जनित उकठा रोग के लिए प्रतिरोधी प्रजातियों के विकास में महत्वपूर्ण योगदानं साथ ही साथ प्रतिरोधी डोनर की पहचान की गयी एवं डॉ. मिश्रा ने दलहनी फसलों में रोगों के धन के लिए अति प्रभावी जैविक निमंत्रक राइकोडर्मा की प्रातियों की खोज एंव पहचान करके उनको पंजीकृत करामा तत्पश्चात पाउडर आधारित जैव फरमुलेशक दलहनडर्मा (सुइकोडर्मा स्परंलम) एवं दलानडमाँ (कोडमा एक्रीडारचियनम) का विकास किया। डॉ. मिश्रा की प्लांट पैथोलॉजिकल पहलू जैव-निवारण, साईपीएम के क्षेत्र में 15 से अधिक वर्षों का अनुभव है और 100 से अधिक शोथ पत्र समीक्षाएं सम्मेलन पत्र सार और अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय मत लोकप्रिय लेख प्रकाशित करने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। डॉ. मिश्रा ने फसलों में जैविक तनाव प्रबंधन पर किताब पांच तकनीकी बुलेटिन, मैनुअल और एक्सस्टेशन फोल्डर लिखे है। विभिन्न वैज्ञानिक और शैक्षिक समाडे पुरस्कार फेलोशिप और पदक भी प्राप्त किए हैं। कई वैज्ञानिक सोसाइटी की सदस्यता भी इनके पास है।
डॉ कृष्णा कुमार बर्तमान में, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर, पूसा में कुलपति (कार्यवाहक) के रूप में कार्यरत हैं। पूर्व में एसकंयूएएसटी, जम्मू में सहायक प्रोफेसर (1999 2006), सीआईएआरआई, पोर्ट ब्लेयर में वरिष्ठ वैज्ञानिक (2006-12) और साईएयरलाई नई दिल्ली में प्रधान वैठानिक (2012-2015) के रूप में अनुसंधान, शिक्षण और प्रसार में बाईस वर्ष का अनुभव है। यह आईसीएआर नई दिलती एसपीपीएस मेधावी वैज्ञानिक पुरस्कार 2011 विशिष्ट सेवा पुरस्कार-2010, जनजातीय खेती प्रणाली में उत्कृष्ट अनुसंधान के त्रिए फखरुद्दीन अली अहमद पुरस्कार से पुरस्कृत है। इन्होंने वैज्ञानिक समाज, अंडमान और निकोचर कमान के किसानों, सैन्य, नौसेना और वायु-कल्याण संघ के कर्मियों को मशरूम और फसल संरक्षण प्रौद्योगिकियों पर प्रशिक्षम और प्रदर्शन प्रदान किया। बैक्टीरियल विल्ट प्रतिरोधी बैंगन जर्मप्लाम का विकास उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। पुस्तक पुस्तक अध्याय लोकप्रिय लेख विस्तार बुलेटिन और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रशिक्षण मैनुअल सहित 120 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित। कृषक समुदाय के लाभ के लिए विभिन्न विषयों पर कई रेडियो वार्ता और टीवी शो वितरित किए हैं।
श्री उत्कर्ष सिंह राठौर, माकृअनुप- भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर), कानपुर के फसल सरक्षण विभाग में अनुसंधान सहायक के रूप में कार्यरत हैं. इन्होने एम एससी एजी (प्लांट पैमोलॉजी) 2014 में आचार्य नरेंद्र देव कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज, अयोध्या से उत्तीर्ण की है। इन्होंने आल्टेरनेरिजा इसिगा जिससे रहर में मेरा लाइट होता है के वनस्मति प्रबंधन पर काम करके अपने शोध करियर की शुरुआत की। इन्होंने प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में बारह मूल शोध पत्र प्रकाशित किए। विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में पंद्रह पुस्तक अध्याय और विभिन्न लेख भी प्रकाशित किए। इन्होंने एनसीबीआई में बेक्टीरिया, कलक और पीले मोजेक सामरस के 200 से अधिक अनुक्रम जमा किए हैं और कई अंतरराष्ट्रीय मेमिनारों में भी भाग लिया है। जनापति विज्ञान विभाग, इलाहावाद विश्वविद्यालय 2019 में युवा वैज्ञानिक पुरस्कार प्राप्तकर्ता। पाइप निकृति विज्ञान की यो प्रतिष्ठित व्यावसायिक समितियों के सदस्य भी है।
डॉ. डी.के. श्रीवास्तव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार में संयुक्त निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। ये बायोटेक नेटवर्किंग सुविधा केंद्र, बीकेटी, लखनऊ के ओआईसी हैं, और पूरे राज्य में कृषि और संबद्ध क्षेत्र प्रभाग से सम्बन्धित अनुसन्धान कार्यक्रम को क्रियान्वित कर रहे हैं व प्रतिष्ठित विज्ञान पुरस्कार योजना यूपी सीएसटी के प्रभारी भी है। स्टेट इनोवेशन फाउंडेशन संल का सबसे मृग्यवान फार्यक्रम भी डॉ. श्रीवास्तव के नेतृत्व में बताया गया। सीएसटी, यूपी का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रम उद्यमिता संवर्धन कार्यक्रम उनके द्वारा पूरे राज्य में आयोजित किया गया। डी. औचास्तव ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 56 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए 10 पुस्तक अध्याग, 5 पुस्तकं, 63 हिंदी लेख, हिंदी पत्रिकाओं के मुख्य संपादक और 'नागोटेक टुडे' अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका के संपादक भी हैं. 10 तकनीकी पुलेटिन, 65 डीली हॉका, 25 विभिन्न संगोप्ती संगोष्ठी सम्मेलन में प्रस्तुत रेडियो सातों और शोध पत्रों के 39 सार भी इनके द्वारा प्रकाशित किये गए। 07/03/2015 को आपके द्वारा माननीय राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में नवाचार क क्षेत्र में एनआईएफ, अहमदाबाद (भारत सरकार) से प्रतिष्ठित राष्ट्रीय भागीदारी पुरस्कार भी प्राप्त किया और विभिन्न वैज्ञानिक और धक समाजों से 25 से अधिक पुरस्कार, फंतांशिप और पदक भी प्राप्त किए हैं।