व्यष्टि में समष्टि के संस्थापक, उदात्त चिंतन के मनीषी, सादा जीवन उच्च विचार के मूर्तिमंत प्रतीक डॉ. अतुल कृष्ण केवल एक व्यक्ति ही नहीं है, वे स्वयं में एक संस्था हैं। वे सामाजिक विचारक होने के साथ-साथ समाज सुधार कार्यों में भी अग्रणी रहे हैं। उनका जीवन स्वयं में एक दर्शन है, वे सामाजिक तथा शैक्षिक उत्थान के परम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सदा अग्रणी भूमिका में रहे। यही कारण है कि उन्होंने अपने निज प्रयासों से भारत की महानतम सुभारती संस्था को खड़ा किया है, जहां शिक्षा केवल पुस्तकीय नहीं हैं, अपितु उसमें सेवा, संस्कार तथा राष्ट्रीयता का परमादर्श भी है। व्यवसाय की दृष्टि से देखें तो वे ख्याति प्राप्त शल्य चिकित्सक हैं लेकिन समाज की कुरीतियों के प्रति भी शल्य चिकित्सक की भूमिका में रहते हैं। उन्होंने उन्मुक्त भारत नामक संगठन का गठन इस उद्देश्य के लिए किया कि समाज के कठोर जातितंत्र को समाप्त किया जा सके। सहभोज की परम्परा को और विस्तार देते हुए वंचित परिवार निर्मित भोजन ग्रहण करने की सामूहिक परम्परा को प्रस्तुत किया जो भारत में अनूठा प्रयोग है, इसका सकारात्मक प्रभाव समाज पर हुआ भी है। भारत की विविध आध्यात्मिक धाराओं को एक मंच प्रदान करने तथा उसमें समान सूत्र खोजकर राष्ट्रीय सांस्कृतिक एकता को पुष्ट करने के लिए उन्होंने सनातन संगम न्यास का गठन किया, उनका यह प्रयास भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। वे अपने दृढ़ संकल्पों से अपनी परिकल्पनाओं को यथार्थ रूप देने की क्षमताओं से युक्त हैं। ऐसा नहीं है, कि उनके भीतर यह गुण अचानक विकसित हुआ हो, बाल्यावस्था से ही वे समाज कल्याण की दिशा में सक्रिय रहे। वे तथागत बुद्ध के पंचशील के अनुयायी हैं लेकिन व्यावहारिक जीवन में उनके भी अपने पंचशील है जिसमें शिक्षा, सेवा, संस्कार, राष्ट्रीयता तथा संस्कृति के भाव निहित हैं। उनकी प्रस्तुत आत्मकथा केवल जीवन प्रसंगों का जीवंत अभिलेख ही नहीं है, वह संघर्षों के मध्य संकल्पों को जीवित रखने की एक ऐसी गाथा है जिसमें मार्मिकता भी है तो वृढ़ता के साथ जीवन को दिशा वेने की प्रेरक ऊर्जा भी है। यह आत्मकथा स्पष्ट करती है कि संस्कारित भारतीयता के सांचे में ढला जीवन युगांतरकारी क्रांति का स्वरूप ग्रहण कर सकता है।
जीवन तरंगिनी मेरी जीवन यात्रा
डॉ. अतुल कृष्ण