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भारतीय प्रिंट मीडिया की एक व्यापक परंपरा है जिसने विकास के कई चरण देखे हैं। मानव जाति ने अपने संचार उपकरण, जली हुई लकड़ी की छवियों से लेकर जावा स्क्रिप्ट और मेटा डेटा फाइलों तक विकसित किए हैं। प्राधीन काल से ही संचार समाज में सूचना और शिक्षा पहुंचाने का एक प्रभावी साधन रहा है। मनुष्य की व्यक्तिगत और सामाजिक प्रवृत्ति उन्हें प्रतीकों से लेकर मौखिक परंपरा और लिखित भाषा, पांडुलिपियों से लेकर मुद्रण और अंत में इंटरनेट के वर्ल्ड वाइड वेब तक विभिन्न माध्यमों से संवाद करने का अवसर देती है। भलतीच प्रिंट मीडिया क्षेत्रीय भाषा के समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पत्रिकाओं के माध्यम से भारतीय समाज में संचार के कई नए रास्ते लेकर आया है जो सूचना, शिक्षा और मनोरंजन प्रदान करते हैं। ऐसे दौर भी आएहै, जब प्रिंट मीडिया का अस्तित्व संकट में नजर आया है। लेकिन, यह हमेशा हर चुनौती का मुकाबला करने में सफल रहा है और पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरा है। प्रिंट श्रीडिया और पब्लिशिंग की दुनिया, ऐसी दुनिया है जो लगातार चदाल रही है। समय के साथ भदलना, यहीं इसकी ताकत है। एका जमाने की टाइप सेटिंग से लेकर आज की डिजीटल प्रिंटिंग तक, प्रिंट ने बहुत सारे दौरों को जिया है। भले ही आम डिजिटल घुम ने बहुत सारे ऑनलाइन रिसोर्सेज और इंटरेक्टिव प्लेटफॉर्म हमें सौंप दिए हैं, लेकिन किताबें आज भी हमारे शान के मजबूत स्तभ के रूप में हमारे साथ हैं। हालांकि यह जरूर है कि अब किताबों ने भी समय के साथ अपना स्वरूप बदला है। आज ये सिर्फ कागजों पर छपी डिवाइस के रूप में नहीं पहचानी जाती। बल्कि उनके पीडीएफ, ई-बुक, ऑडियो बुक बैसे अनेक अवतार हमारे बीच मौजूद हैं। जो, नए जमाने के रीडर्स को किताबों से जोड़े रखने में अम्रप भूमिका निभा रहे हैं इसी प्रकार के अन्य पहलुओं का विस्तृत विवरण इस पुस्तक में है।

आज का प्रिंट मीडिया

SKU: 978-81-975707-1-1
₹695.00Price
  • प्रो. (डॉ.) वीरेंद्र कुमार भारती : सूचना और संचार के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध व्यक्तित्व प्रो. भारती वर्तमान में भारतीय जन संचार संस्थान (भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन) में प्रोफेसर के पद पर काम कर रहे हैं। प्रोफेसर पद के साथ वे भारतीय जन संचार संस्थान के प्रकाशन विभाग के प्रमुख, अमरावती केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक, कम्यूनिनिकेटर' जर्नल के संपादक और उर्दू जर्नलिज्म विभाग के कोर्स डायरेक्टर का कार्य भी देख रहे है। इससे पूर्व वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के कृषि ज्ञान प्रबंधन निदेशालय में मुख्य उत्पादन अधिकारी के रूप में कार्य कर चुके हैं। उन्होंने संचार प्रबंधन के क्षेत्र में पीएच. डी. किया है तथा 12 किताबें, 150 से अधिक शोध पत्र और लोकप्रिय लेख लिखे हैं। उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित किया गया है, जिनमें आईसीएआर के प्रतिष्ठित डॉ. राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार, एमएचआरडी से शिक्षा पुरस्कार और एग्रीकल्चरल कम्युनिकेशन पुरस्कार शामिल हैं

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